दुआ ए मासूरा इस्लाम में एक महत्वपूर्ण दुआ है जो नमाज़ के अंतिम भाग में पढ़ी जाती है। यह दुआ इंसान को उसके गुनाहों की माफी और अल्लाह की रहमत पाने का जरिया प्रदान करती है। नमाज़ में इसे पढ़ना न केवल इबादत को संपूर्ण बनाता है बल्कि दिल में सुकून और बरकत का एहसास भी लाता है। इस लेख में हम dua e masura in hindi के महत्व, इसके विभिन्न भाषाओं में पाठ, कब और कैसे इसे पढ़ना चाहिए, और इसकी फ़ज़ीलत पर चर्चा करेंगे ताकि हर मुसलमान इसे अपनी इबादत का हिस्सा बना सके।
Dua e Masura in Namaz | दुआ ए मासूरा नमाज़ में
दुआ ए मासूरा एक खास दुआ है जो नमाज़ के अंतिम भाग में पढ़ी जाती है। इसका उद्देश्य अल्लाह से माफी और रहमत की दर्ख्वास्त करना है, साथ ही इसे पढ़ने से नमाज़ की तकमील मानी जाती है। यह दुआ मुसलमानों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उन्हें अपने गुनाहों से माफी पाने का जरिया देती है और उनके इबादत को संपूर्ण बनाती है।
Dua e Masura Kya Hai? | दुआ ए मासूरा क्या है?
दुआ ए मासूरा का मतलब है एक ऐसी दुआ जो नमाज़ में अल्लाह से माफी, रहमत और बरकत के लिए पढ़ी जाती है। नमाज़ में इसे अत्तहियात और दुरूद इब्राहीम के बाद पढ़ा जाता है और इसके बाद सलाम फेरते हैं। यह दुआ इस्लामिक परंपरा में रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) द्वारा सिखाई गई है, और इसे पढ़ने का उद्देश्य अपने आप को अल्लाह के सामने पस्त करना और उससे माफी की गुजारिश करना है।
Dua e Masura In Hindi, Arabic, Roman English | दुआ ए मासूरा विभिन्न भाषाओं में

Dua e Masura in Arabic | दुआ ए मासूरा अरबी में
اَللّٰهُمَّ اِنِّيْ ظَلَمْتُ نَفْسِيْ ظُلْمًا كَثِيرًا وَلَا يَغْفِرُ الذُّنُوْبَ اِلَّا اَنْتَ فَاغْفِرْ لِيْ مَغْفِرَةً مِّنْ عِنْدِكَ وَارْحَمْنِيْ اِنَّكَ اَنْتَ الْغَفُوْرُ الرَّحِيْمُ
Dua e Masura in Hindi | दुआ ए मासूरा हिंदी में
अल्लाहुम्मा इन्नी जलम्तु नफ्सी जुल्मन कसीरन व-ला यगफिरुज़-ज़ुनूबा इल्ला अंता फगफिर ली मगफिरतं मिन इंदिका वार-हमनी इन्नका अन्तल-गफूरुर्रहीम
Dua e Masura in English Translation | दुआ ए मासूरा इंग्लिश में
“O Allah, I have greatly wronged myself and none can forgive sins except You. So forgive me with Your special forgiveness and have mercy on me. Surely, You are the Most Forgiving, Most Merciful.”
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WhatsApp GroupDua e Masura in Roman English | दुआ ए मासूरा रोमन इंग्लिश में
“Allahumma Inni Zalamtu Nafsi Zulman Kaseeran, Wala Yaghfiruz-Zunooba Illa Anta, Faghfirlee Maghfiratan-min ‘Indika, Warhamni Innaka Antal-Ghafoorur-Raheem.”
Dua e Masura Ka Tarjuma In Hindi | दुआ ए मासूरा का तर्जुमा

इस दुआ का तर्जुमा है: “ऐ अल्लाह, मैंने अपनी जान पर बहुत जुल्म किया है, और तुझसे अलावा कोई गुनाहों को माफ नहीं कर सकता। मुझे अपनी खास माफी से माफ कर और मुझ पर रहमत कर। बेशक, तू ही सबसे बड़ा माफ करने वाला और बेहद रहम वाला है।”
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Kab Aur Kaise Padhe Dua Masura | नमाज़ में दुआ ए मासूरा कब और कैसे पढ़ें
नमाज़ में इस दुआ को शामिल करने का तरीका नमाज़ की आखिरी रकात में अत्तहियात के बाद है। इसे पढ़ते वक्त सबसे पहले अत्तहियात पढ़ा जाता है, फिर दुरूद इब्राहीम, और उसके बाद दुआ ए मासूरा। इस दुआ के बाद सलाम फेरते हुए नमाज़ समाप्त की जाती है।
- 2 रकात वाली नमाज़: अंतिम रकात में दो सजदे के बाद बैठें, अत्तहियात और दुरूद इब्राहीम पढ़ने के बाद दुआ ए मासूरा पढ़ें।
- 3 रकात वाली नमाज़: तीसरी रकात के दो सजदों के बाद इसी क्रम में दुआ को पढ़ें।
- 4 रकात वाली नमाज़: चौथी रकात के दोनों सजदों के बाद इसी तरीके से दुआ ए मासूरा पढ़ें।
Niyat Kholne ka Tarika | नीयत खोलने का तरीका
नियत खोलने का तरीका यह है कि अत्तहियात और दुरूद इब्राहीम के बाद, दिल से नमाज़ को पूरा करने की नीयत करें। यह इरादा करें कि नमाज मुकम्मल है और अल्लाह से दुआ मांगें कि आपकी इबादत को कबूल किया जाए।
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WhatsApp GroupDua e Masura Ke Fayde Aur Fazilat | दुआ ए मासूरा के फायदे और फ़ज़ीलत
रूहानी महत्व:
यह दुआ एक अद्भुत इबादत है जो दिल को अल्लाह की ओर मोड़ती है और उसकी रहमतों को प्राप्त करने का जरिया बनती है।
कैसे दुआ ए मासूरा से बरकत और रहमत मिलती है:
दुआ ए मासूरा पढ़ने से अल्लाह की माफी और बरकत का दरवाज़ा खुलता है। इसे पढ़ने वाला व्यक्ति अपने जीवन में मानसिक शांति और घर में बरकत महसूस करता है।
अगर दुआ ए मासूरा याद न हो तो क्या पढ़ें
अगर दुआ ए मासूरा याद नहीं हो तो इसे याद करने की कोशिश करें, और याद होने तक कोई और दुआ पढा लो
रब्बना आतिना फ़िद दुनिया वाल आख़िरा , कोई और भी दुआ
Dua E Masura Hadith Reference | हदीस और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

Dua e Masura Hadith Reference | हदीस में दुआ ए मासूरा का महत्व:
हदीसों में दुआ ए मासूरा की अहमियत को बताया गया है। एक हदीस में हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ (रजि०) ने रसूलुल्लाह (सल्ल०) से दरख्वास्त की कि एक ऐसी दुआ सिखाएँ जिसे वे नमाज़ में पढ़ सकें, तब उन्होंने दुआ ए मासूरा सिखाई।
Sahih Al Bukhari 834 - Refer Here
Dua e Masura Yad Na Ho To Kya Padhe? | दुआ ए मासूरा याद न हो तो क्या पढ़ें?
अगर यह याद न हो तो रब्बना आतिना फ़िद दुनिया वाल आख़िरा , कोई और भी दुआ क्यूँ ये क़बूलियत का वक़्त होता है – Source
Dua e Masura Kab Padhi Jati Hai? | दुआ ए मासूरा कब पढ़ी जाती है?
दुआ ए मासूरा को नमाज़ की अंतिम बैठकी में, अत्तहियात और दुरूद के बाद पढ़ा जाता है।
Conclusion | निष्कर्ष
दुआ ए मासूरा का नियमित पाठ करना न केवल हमारे नमाज़ को संपूर्ण बनाता है बल्कि हमारी आत्मा को सुकून और शांति भी प्रदान करता है। यह दुआ मुसलमानों के जीवन में बरकत और अल्लाह की रहमत को लाने का जरिया है। इसलिए, इसे याद कर नियमित रूप से अपनी नमाज़ में शामिल करें।
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