Iftar Ki Dua | Roza Iftar Kholne Ki Dua | इफ्तार की दुआ

इफ्तार की दुआ क्यों पढ़नी चाहिए? रोज़ा खोलने के बाद दुआ पढ़ने का आध्यात्मिक और सेहत से जुड़ा महत्व होता है। रमज़ान में रोज़ा रखने का एक मुख्य उद्देश्य खुदा की इबादत करना और अपनी आत्मा को शुद्ध करना होता है। जब हम पूरे दिन रोज़ा रखते हैं, तब हमारा शरीर और आत्मा दोनों ही संयम और धैर्य का अभ्यास करते हैं। ऐसे में इफ्तार के समय दुआ पढ़ने से यह अमल और भी ज्यादा फलदायी हो जाता है।

रोज़ा खोलने की दुआ हमें यह याद दिलाती है कि हमने अल्लाह के लिए उपवास रखा और अब उसी की इजाज़त से इसे तोड़ रहे हैं। यह दुआ इफ्तार के समय की बरकत को बढ़ाती है और हमें अल्लाह की रहमत के करीब लाती है। इफ्तार के वक्त दुआ करने से हमारी इच्छाएं पूरी होने की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि यह वह समय होता है जब अल्लाह अपने बंदों की दुआ कबूल करता है।

रोज़ा खोलने की दुआ | Roza Iftar Ki Dua

Roza Iftar Ki Dua

इफ्तार की दुआ (हिंदी में) “ज़हबज़-ज़माऊ वब्तल्लतिल-ऊरूक़ वसाबतल-अज्रु इंशा-अल्लाह” अर्थ: “प्यास बुझ गई, नसें तर हो गईं और (रोज़े का) इनाम मुक़र्रर हो गया, इंशा-अल्लाह।”

यह दुआ रोज़ा खोलने (इफ्तार) के समय पढ़ी जाती है। इसका मतलब यह होता है कि इंसान ने रोज़ा पूरा कर लिया, उसकी प्यास खत्म हो गई और अल्लाह से उम्मीद है कि उसे इसका पूरा सवाब (सवाब = पुण्य/इनाम) मिलेगा।

यह एक मुस्तहब (सुनन) दुआ है, जिसे इफ्तार के समय पढ़ना अच्छा माना जाता है।

Roza Kholne Iftar Ki Dua (English में)

“Zahaba-z-zama’u wabtallatil-urooqu wa thabata-l-ajru Insha-Allah.” Meaning: “The thirst has gone, the veins have been moistened, and the reward is confirmed, Insha’Allah (if Allah wills)”

Roza Iftar Ki Dua Hadith Se Sabit | रोज़ा इफ्तार की दुआ हदीस से साबित

मरवान इब्न सलीम अल-मुक़फ़्फ़ा ने कहा:
“मैंने इब्न उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) को देखा कि वे अपनी दाढ़ी को अपने हाथ से पकड़कर मुट्ठी से ज़्यादा बढ़े हुए हिस्से को काट रहे थे। उन्होंने कहा कि नबी (ﷺ) ने रोज़ा खोलते समय फरमाया (Abu Dawud, 2357):

‘प्यास बुझ गई, नसें तर हो गईं और इनाम (सवाब) निश्चित हो गया, अगर अल्लाह चाहे।’

व्याख्या:

हदीस के दो हिस्से हैं:
पहले हिस्से में हज़रत इब्न उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) की दाढ़ी से संबंधित एक अमल (प्रैक्टिस) का ज़िक्र है, जिसमें वे अपनी दाढ़ी को मुट्ठी में पकड़कर उससे अधिक हिस्सा काट देते थे।
दूसरे हिस्से में इफ्तार की दुआ का उल्लेख है, जिसे रोज़ा खोलते समय पढ़ा जाता है।
इफ्तार की दुआ:
जब रोज़ेदार इफ्तार करता है, तो यह दुआ पढ़ी जाती है, जो इस बात की गवाही देती है कि अब प्यास बुझ चुकी है, शरीर को राहत मिल चुकी है और रोज़े का इनाम निश्चित है, इंशा-अल्लाह।
यह दुआ नबी करीम (ﷺ) की सुन्नत में शामिल है और इसका पढ़ना मुस्तहब (पसंदीदा) है।
रोज़े की फ़ज़ीलत:
यह हदीस रोज़े की अहमियत और उसके अज्र (पुण्य) पर जोर देती है।
रोज़ा सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का नाम नहीं, बल्कि सब्र, तक़वा और अल्लाह की इबादत के लिए है।

जब मेहमानों के साथ करें इफ्तार अगर आप किसी के घर इफ्तार कर रहे हैं या दूसरों को इफ्तार करवा रहे हैं, तो यह दुआ पढ़ सकते हैं। मेहमानों के साथ इफ्तार करना इस्लाम में एक बड़ा पुण्य माना गया है। पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने भी फरमाया है कि जो कोई रोज़ेदार को इफ्तार करवाता है, उसे भी रोज़ेदार के बराबर सवाब मिलता है।

इफ्तार की मेहमानों के साथ दुआ (हिंदी में) “अल्लाहुम्मा बारिक लना फीह व अर्जुक्ना खैरं मिन्हु।” अर्थ: “हे अल्लाह! इसमें हमारे लिए बरकत दे और हमें इससे बेहतर अता फरमा।”

Iftar Ki Dua for Guests (English में)

“Allahumma barik lana fihi wa arzuqna khayran minhu.” Meaning: “O Allah! Bless this food for us and provide us with something better than it.”

مہمانوں کے ساتھ افطار کی دعا (उर्दू में) “اللَّهُمَّ بَارِكْ لَنَا فِيهِ وَأَرْزُقْنَا خَيْرًا مِنْهُ”

रमज़ान में पढ़ी जाने वाली आम दुआ | Ramzan Ki Dua रमज़ान में बरकत और रहमत के लिए पढ़ी जाने वाली खास दुआ हर मुसलमान के लिए बेहद अहम होती है। यह दुआ न सिर्फ हमें अल्लाह के करीब लाती है बल्कि हमारी सभी दुआओं की कबूलियत की संभावना को भी बढ़ाती है।

Ramadan Iftar Se Judi Kuch Hadith | रमज़ान इफ्तार से जुड़ी कुछ हदीसें

Ramadan Iftar Se Judi Kuch Hadith

हज़रत ज़ैद बिन खालिद अल-जुहानी (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:

“जो किसी रोज़ेदार को इफ्तार करवाए, उसे रोज़ेदार के बराबर सवाब मिलेगा, बिना इसके कि रोज़ेदार के अज्र (पुण्य) में कोई कमी हो।”
(अल-तिर्मिज़ी: 807, इब्न माजह: 1746)

व्याख्या:

यह हदीस इफ्तार करवाने की फ़ज़ीलत (महत्त्व) को बयान करती है। इसमें बताया गया है कि अगर कोई किसी रोज़ेदार को इफ्तार कराता है, तो अल्लाह तआला उसे भी उतना ही सवाब (पुण्य) देता है जितना रोज़ा रखने वाले को मिलता है।

  1. सदक़ा और मदद का महत्व:
    • यह हदीस हमें सिखाती है कि दूसरों की मदद करना कितना सवाब का काम है।
    • किसी भूखे-प्यासे रोज़ेदार को इफ्तार करवाना नेक कार्य है, जो अल्लाह को बहुत पसंद है।
  2. रमज़ान में इफ्तार की अहमियत:
    • रमज़ान में इफ्तार करवाना एक बहुत बड़ी नेकी मानी जाती है।
    • यह अमल इंसान को अल्लाह की रहमत और जन्नत के करीब कर देता है।

निष्कर्ष:
अगर कोई व्यक्ति रोज़ा नहीं भी रख सका, तो वह किसी को इफ्तार करवाकर भी अज्र (पुण्य) कमा सकता है। यह इस्लाम की खूबसूरती है कि नेकियों को बढ़ाया जाता है और दूसरों की मदद करने पर भी बेपनाह सवाब मिलता है।

रमज़ान की आम दुआ (हिंदी में) | Ramadan Ki Aam Dua

“अल्लाहुम्मा इनका अफुव्वुन तुहिब्बुल अफ्वा फअफु अन्नी।” अर्थ: “हे अल्लाह! तू बहुत माफ करने वाला है और माफी को पसंद करता है, इसलिए मुझे माफ कर दे।”

Ramzan Ki Dua (English में) “Allahumma innaka afuwwun tuhibbul afwa fa’fu anni.” Meaning: “O Allah! You are Most Forgiving, and You love forgiveness, so forgive me.”

رمضان کی عام دعا (उर्दू में) “اللَّهُمَّ إِنَّكَ عَفُوٌّ تُحِبُّ الْعَفْوَ فَاعْفُ عَنِّي”

इफ्तार के बाद दुआ पढ़ने के फायदे इफ्तार के बाद दुआ पढ़ने के कई आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक लाभ होते हैं। जब हम पूरे दिन उपवास रखते हैं, तो हमारा शरीर एक शुद्धिकरण प्रक्रिया से गुजरता है। इस समय इफ्तार के बाद अल्लाह से दुआ मांगने से यह सफर और भी फलदायी हो जाता है।

  1. इफ्तार के समय दुआ कबूल होने की संभावना अधिक होती है।
  2. यह आत्मा को मजबूत बनाता है और हमें अल्लाह के करीब लाता है।
  3. दुआ के जरिए हम अपनी इच्छाओं और जरूरतों को सीधे अल्लाह के सामने रख सकते हैं।
  4. इफ्तार के बाद की दुआ मानसिक शांति और तसल्ली प्रदान करती है।
  5. यह हमें शुक्रगुजार बनाती है और हमारे अंदर धैर्य व संयम का विकास करती है।

और पढ़ें: रमज़ान से जुड़ी खास दुआएं

  1. रोज़ा रखने से पहले पढ़ने की दुआ
  2. रमज़ान में दुआ मांगने का सही तरीका

रमज़ान के पाक महीने में इफ्तार की दुआ पढ़ने से न केवल हमें आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि हमारी दुआएं भी अल्लाह के दरबार में कबूल होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए, हमें इफ्तार के समय अपनी दुआओं को सच्चे दिल से अदा करना चाहिए और अल्लाह की रहमत और बरकत की उम्मीद रखनी चाहिए।

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