Dua Mangne Ka Tarika | दुआ मांगने का सही तरीका

दुआ मांगना एक ऐसी इबादत है जो अल्लाह के करीब होने का बेहतरीन जरिया है। जब हम अल्लाह से अपने दिल की बात कहने के लिए हाथ उठाते हैं, तो यह हमारे और अल्लाह के बीच एक सीधा संवाद बनता है। Dua Mangne Ka Tarika जानने के लिए यह जरूरी है कि हम कुछ अहम चीजों का ख्याल रखें, ताकि हमारी दुआ कुबूलियत के काबिल बन सके। यहां हम दुआ मांगने के कुछ तरीकों और सही तरीकों पर बात करेंगे।

Dua Mangne Ki Tayyari | दुआ मांगने की तैयारी

दुआ करने से पहले हमें अपने आपको पाक और साफ करना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले वजू करना जरूरी है, क्योंकि पाक-साफ रहना दुआ के लिए एक अच्छी शुरुआत है। अगर किसी के पास वजू करने की सहूलत नहीं है, तो वह तैमुम कर सकता है। जब हम पाक-साफ रहते हैं, तो यह हमारे इरादों और अल्लाह के प्रति हमारी ईमानदारी को दर्शाता है। इसके अलावा, दिल से सच्ची नियत और इंक्सारी (विनम्रता) के साथ दुआ करना बेहद अहम है।

जब हम अल्लाह से दुआ करते हैं, तो हमें इस बात का यकीन रखना चाहिए कि वह हमारी बातों को सुन रहा है और हमें उसकी रहमत का इंतजार करना चाहिए। दिल में सच्ची नियत रखना और अपने अंदर इंक्सारी पैदा करना दुआ की कुबूलियत में अहम भूमिका निभाता है।

बिना वुज़ू के भी दुआ माँगी जा सकती है, बस दिल में यक़ीन हो कि अल्लाह आपकी दुआ ज़रूर क़बूल करेगा।

Dua Mangne Ka Tarika | दुआ मांगने का सही तरीका

Dua Mangne Ka Tarika | दुआ मांगने का सही तरीका

दुआ का सही तरीका जानना भी बेहद जरूरी है ताकि हमारी दुआ अल्लाह तक पहुंच सके। दुआ करते वक्त हमें किबला की ओर मुंह करके बैठना चाहिए, क्योंकि यह उस इबादत का तरीका है जो हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें सिखाया है। इसके बाद, अल्लाह की तारीफ और दुरूद शरीफ पढ़ना चाहिए, जिससे दुआ की शुरुआत होती है। यह अल्लाह की तारीफ और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर सलाम भेजने का तरीका है, और इससे अल्लाह की रहमत हम पर बढ़ती है।

जब हम दुआ करें तो अपने हाथों को आसमान की तरफ उठाएं और अपनी बातों को अल्लाह के सामने रखें। हाथों को सही तरीके से उठाना भी दुआ का हिस्सा है और यह हमारी दरख्वास्त को दिखाता है। हाथों को सही तरीके से उठाना और अपनी बातों को अल्लाह तक पहुंचाना दुआ के असर को बढ़ाता है।

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Dua Mangne Ka Tarika – Kaun Se Alfaz Jode Dua Qubuliyat Ke Liye

इब्न अब्बास से रिवायत है कि उन्होंने कहा: "जब जिब्राइल (अ.स) नबी (स.अ.व) के साथ बैठे थे, तो उन्होंने ऊपर से एक आवाज़ सुनी। उन्होंने अपना सिर उठाया और कहा: 'यह स्वर्ग का एक दरवाजा है, जो आज खुला है, और इससे पहले कभी नहीं खुला था।' एक फ़रिश्ता उस दरवाजे से उतरा और कहा: 'यह एक फ़रिश्ता है जो धरती पर आया है, और इससे पहले कभी नहीं उतरा था।' उसने उन्हें सलाम किया और कहा: 'आपको दो नूरों की खुशखबरी हो जो आपसे पहले किसी भी नबी को नहीं दिए गए: किताब की शुरूआत (सूरह फातिहा) और सूरह अल-बकरा की आखिरी आयतें। आप इनमें से कोई भी एक हर्फ़ (अक्षर) पढ़ेंगे, तो आपको बदले में इनाम दिया जाएगा।'"

इस हदीस में हज़रत इब्न अब्बास (र.अ) एक महत्वपूर्ण घटना का जिक्र करते हैं। इसमें बताया गया है कि जिब्राइल (अ.स) नबी मुहम्मद (स.अ.व) के पास बैठे थे, तभी आसमान में से एक आवाज़ सुनाई दी। जिब्राइल (अ.स) ने नबी (स.अ.व) को बताया कि स्वर्ग का एक दरवाजा खोला गया है, जो पहले कभी नहीं खुला था। उस दरवाजे से एक फरिश्ता आया जो पहले कभी धरती पर नहीं उतरा था।

उस फरिश्ते ने नबी (स.अ.व) को सलाम किया और उन्हें दो अनमोल नूर (रोशनी) की खुशखबरी दी। ये दो नूर सूरह अल-फ़ातिहा (कुरान की पहली सूरह) और सूरह अल-बकरा की अंतिम आयतें (285-286) हैं। ये दोनों आयतें विशेष रूप से महत्वपूर्ण और रहमत से भरी मानी जाती हैं। फरिश्ते ने यह भी कहा कि इन आयतों के हर अक्षर के पढ़ने पर अल्लाह से इनाम मिलेगा।

इसका मतलब है कि इन आयतों को पढ़ने में विशेष बरकत और लाभ है।

HadithSahih Muslim Book – 6, Hadith – 1877

इब्राहीम बिन मुहम्मद बिन साद ने अपने पिता से, और उन्होंने साद से रिवायत किया कि अल्लाह के रसूल (स.अ.व) ने कहा: "धुन्नून (हज़रत यूनुस अ.स) की दुआ, जो उन्होंने मछली के पेट में रहते हुए की थी, यह थी: 'आपके अलावा कोई माबूद नहीं है, आप पाक हैं, और वास्तव में, मैं ज़ालिमों में से हूँ।' (ला इलाहा इल्ला अंता सुब्हानका इन्नी कुंतु मिनज़-ज़ालिमीन)। तो यक़ीनन, कोई भी मुसलमान इस दुआ के साथ किसी भी चीज़ के लिए दुआ करता है, तो अल्लाह उसकी दुआ क़बूल करता है।"

इस हदीस में बताया गया है कि जब हज़रत यूनुस (अ.स) मछली के पेट में थे, तो उन्होंने अल्लाह से एक खास दुआ की थी। वह दुआ थी: “ला इलाहा इल्ला अंता सुब्हानका इन्नी कुंतु मिनज़-ज़ालिमीन” यानी “आपके अलावा कोई माबूद नहीं है, आप पाक हैं, और वास्तव में, मैं ज़ालिमों में से हूँ।”

इसका मतलब यह है कि हज़रत यूनुस (अ.स) ने अपनी गलती मानते हुए अल्लाह से मदद मांगी थी। इस दुआ में अल्लाह की महानता और अपनी गलती को मानने का इज़हार है। हदीस में बताया गया है कि जो भी मुसलमान इस दुआ को पढ़कर अल्लाह से कुछ भी मांगता है, तो अल्लाह उसकी दुआ को क़बूल करता है। यह दुआ, कठिनाई के समय में और अपनी गलतियों को महसूस करते हुए, अल्लाह से मदद के लिए बहुत असरदार मानी जाती है।

इस दुआ का महत्व यह है कि यह अल्लाह की तारीफ और अपने आप को सुधारने की बात को साथ में लिए हुए है, और इसको पढ़कर इंसान अपनी मुश्किलों में अल्लाह से मदद मांग सकता है।

Hadith – Tirmidhi 3505

Dua Mangne Ke Behtareen Waqt | दुआ मांगने के बेहतरीन वक्त

दुआ का एक अहम पहलू यह भी है कि हम कब और किस समय पर दुआ करें। कुछ खास वक्त ऐसे होते हैं जिनमें दुआ की कुबूलियत का इमकान ज्यादा होता है। फर्ज़ नमाजों के बाद, लैलतुल क़द्र और शब-ए-बरात जैसी खास रातों में की गई दुआ को अल्लाह जल्द सुनता है।

इसके अलावा, बारिश के वक्त, बीमारियों के दौरान या किसी मुसीबत की घड़ी में भी अल्लाह के सामने की गई दुआ बहुत असरदार मानी जाती है। अल्लाह अपने बंदों को उसकी मुश्किल घड़ी में अकेला नहीं छोड़ता और जब वह उससे दुआ करता है तो उसकी मदद जरूर करता है। इसलिए, हमें इन खास मौकों पर अपनी दुआओं को अल्लाह के सामने रखनी चाहिए।

Kaun Kaun Si Dua Jaldi Kubul Hoti Hai? | कौन-कौन सी दुआ जल्दी कुबूल होती है?

कुछ खास लोग ऐसे होते हैं जिनकी दुआ जल्दी कुबूल होती है। जैसे, माता-पिता की दुआ हमेशा कुबूल होती है, इसलिए बच्चों को चाहिए कि वह अपने माता-पिता की दुआओं को अपने लिए हासिल करें और उनसे दुआ करवाएं। इसी तरह, मुसाफिर (यात्रा करने वाले) की दुआ भी जल्दी कुबूल होती है, इसलिए मुसाफिर के तौर पर की गई दुआ भी बहुत असरदार होती है। मजलूम और मजबूर की दुआ भी अल्लाह के दरबार में जल्दी कुबूल होती है, क्योंकि उनके दिल में सच्चाई और अल्लाह की रहमत पर भरोसा होता है।

रोजे की हालत में भी जब कोई रोजेदार दुआ करता है, तो अल्लाह उसकी दुआ को सुनता है और कुबूल करता है। रोजे के वक्त इंसान अल्लाह के करीब होता है और उस समय की गई दुआ अल्लाह तक जरूर पहुंचती है। इसलिए, हमें चाहिए कि हम रोजे के दौरान अपनी जरूरतों और परेशानियों को अल्लाह के सामने रखें और उससे दुआ करें।

Kahan Kahan Dua Kubul Hoti Hai? | कहाँ-कहाँ दुआ कुबूल होती है?

कुछ खास जगहें ऐसी होती हैं जहां दुआ कुबूलियत के ज्यादा करीब होती है। मक्का में काबा के अंदर की गई दुआ, सफा और मरवा पर की गई दुआ, अराफात के मैदान में की गई दुआ को अल्लाह जरूर सुनता है। हज के दौरान इन खास जगहों पर की गई दुआएं बहुत ही खास मानी जाती हैं और अल्लाह के दरबार में जल्दी कुबूल होती हैं। इन जगहों पर दुआ मांगने से इंसान को अल्लाह की रहमत का इमकान ज्यादा होता है और उसकी दुआएं असरदार मानी जाती हैं।

Kaun Si Dua Mangni Se Bachna Chahiye? | कौन सी दुआ मांगने से बचना चाहिए?

जब हम अल्लाह से दुआ करते हैं, तो हमें कुछ खास बातों का ख्याल रखना चाहिए ताकि हमारी दुआ में कोई कमी न रह जाए। हमें गैर जरूरी और नुकसानदेह दुआओं से बचना चाहिए, जैसे किसी और के लिए बुरा चाहना या अपने फायदे के लिए दूसरों का नुकसान करना।

यह अल्लाह के नजरों में नापसंद कामों में आता है, और ऐसी दुआ कुबूल नहीं होती बल्कि हमें इसका नुकसान हो सकता है। इसके अलावा, रिश्तों को तोड़ने की दुआ न करें, क्योंकि इस्लाम में रिश्तों को जोड़ने और आपसी भाईचारे को बनाए रखने का हुक्म दिया गया है। ऐसी दुआएं अल्लाह के दरबार में कुबूल नहीं होतीं और हमें उनसे बचना चाहिए।

Dua Karte Waqt Kaise Hoshiyar Rahein? | दुआ करते वक्त कैसे होशियार रहें?

दुआ करते वक्त हमारी नजर और ध्यान सिर्फ अल्लाह पर होना चाहिए। बहुत से लोग दुआ करते समय इधर-उधर देखते हैं या किसी और चीज में मशगूल हो जाते हैं, जो कि दुआ की तवज्जो को कम करता है। दुआ के दौरान ध्यान इधर-उधर भटकने से हमारी नीयत कमजोर होती है और हमारी दुआ पर इसका असर पड़ सकता है। दुआ के दौरान अपने दिल और दिमाग को अल्लाह की तरफ रखना चाहिए और अपनी सभी परेशानियों को उसी पर छोड़ देना चाहिए। ध्यान से दुआ करने से अल्लाह की रहमत का असर जल्दी महसूस होता है।

FAQ’s

खुदा से दुआ कैसे मांगते हैं?

खुदा से दुआ मांगते वक्त दिल से सच्ची नियत रखें और विनम्रता से अपनी बात रखें। अल्लाह से अपनी जरूरतों को दिल की गहराई से अर्ज़ करें, भरोसे के साथ कि वह सुन रहा है।

दुआ कबूल होने के लिए क्या करना चाहिए?

दुआ कबूल होने के लिए अल्लाह पर पूर्ण यक़ीन रखें, हलाल आजीविका अपनाएँ, और अपने गुनाहों से तौबा करें। दुआ में सब्र रखें और अल्लाह की मर्जी पर भरोसा रखें।

नमाज के बाद दुआ कैसे मांगी जाती है?

नमाज के बाद दुआ मांगते समय हाथ उठाकर तहे दिल से अल्लाह से बात करें, अपनी जरूरतें और दुआएं मांगे। नमाज के बाद की दुआ विशेष बरकतों वाली मानी जाती है।

दुआ से पहले क्या पढ़ना चाहिए?

दुआ से पहले बिस्मिल्लाह और दरूद शरीफ (सलाम भेजना) पढ़ना चाहिए। इससे दुआ को बरकत मिलती है और अल्लाह की रहमत से दुआ क़बूल होने की उम्मीद बढ़ती है।

Akhiri Naseehat | आख़िरी नसीहत

दुआ के बारे में आखिरी नसीहत यही है कि हमें दुआ में ठोस इरादा और सब्र रखना चाहिए। कभी-कभी हमारी दुआएं तुरंत कुबूल नहीं होतीं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अल्लाह ने हमें मना कर दिया है। अल्लाह हर चीज का सही वक्त जानता है और वह हमें वही देता है जो हमारे लिए बेहतर हो। इसलिए, हमें अल्लाह की कुदरत और हिकमत पर भरोसा रखना चाहिए और यह यकीन रखना चाहिए कि जो कुछ भी होता है, हमारे भले के लिए होता है।

अल्लाह अपने बंदों की दुआओं को कुबूल करता है, बस हमें चाहिए कि हम सच्चे दिल से और पूरी ईमानदारी के साथ उसकी रहमत का इंतजार करें। अपनी जरूरतों और परेशानियों को अल्लाह के सामने रखें, और अपने रिश्तों, हालात और जरूरतों में उसकी मदद मांगें। यही दुआ मांगने का सही तरीका है, और इसी तरीके से हम अपने अल्लाह के और करीब हो सकते हैं।

यह ब्लॉग पोस्ट आपको सही तरीके से दुआ मांगने की जानकारी देता है, जिससे आपकी दुआ अल्लाह के दरबार में कुबूल हो सकती है। अल्लाह तआला हमें दुआ के सही तरीके को अपनाने की तौफीक दे और हमारी सभी जायज दुआओं को कुबूल करे। आमीन।

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